काव्य-पल्लवन

मार्च, २००७ से प्रारम्भ


हिन्द-युग्म मार्च २००७ से प्रत्येक माह किसी विषय विशेष, चित्र विशेष, फ़ोटों विशेष, संगीत विशेष पर एक सामूहिक-कविता-लेखन का आयोजन करता है, जिसको नाम दिया है 'काव्य-पल्लवन'। किसी सुगठित एवम् सुंगुंफित विचार, उक्ति अथवा भाव को क्रमशः खोलने या विस्तार देने को 'पल्लवन' कहते हैं। यह संक्षेपण की बिल्कुल उल्टी प्रक्रिया है। फिर भी यह तुलना बहुत सटीक नहीं कही जा सकती है। क्योंकि जैसा कि पल्लवन का शाब्दिक अर्थ ही है फलना-फूलना, पनपना-बीज या कली से क्रमशः विकसित रूप लेकर रूपाकार लेना अथवा रस-गंध धारण करना, एक नैसर्गिक, किंतु नितान्त अनिर्दिष्ट-सी क्रिया है। पल्लवन में विचार या भाव की विकसन-क्रिया प्रदत्त वातावरण में नहीं होती, बल्कि उसे अपनी कल्पना एवम् संज्ञान से इस तरह निर्मित करना होता है कि नैसर्गिक सी लगने वाली परम्परित अर्थ-प्रक्रिया में खलल न पड़े।

चूँकि हम विषय-विस्तार का माध्यम कविता को बनाते हैं, इसलिए इसका नाम दिया है 'काव्य-पल्लवन'। इस माध्यम से हम रचनाकारों की रचनाधर्मिता को प्रबल और सुंदर ढंग से परख पायेंगे।

नियंत्रक- तपन शर्मा

काव्य-पल्लवन के अब तक के अंक -

























हिन्द-युग्म पर वापस लौटें

-->